रफ़ी साहब की याद में ललित भाई ने जो गीत लगाया है उसी गीत ने मुझे मेरे अतीत की ओर ढकेला उस अतीत को देखा तो मैं स्कूल के दसवें दर्ज़े का स्टूडेंट शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गोसलपुर के दसवें दर्ज़े के क्लास रूम में दोपहर बाद प्राय: मास्साब बस से जबलपुर निकल जाते थे उस दिन यही हुआ.... रोजिन्ना की तरह हम हुल्लड़ मचा रहे थे किंतु उस दिन खाली पीरियड में गाने का प्रोग्राम हुआ आखिरी का आधा घंटा था .... टीचर जी बस स्टैंड रवाना हो चुके थे सो हम लोग आपसी फ़रमाईशों के अनुसार गाना डेस्क बजा बजा के गा रहे थे मेरी बारी आई तो मैने ये वाला गाया
गीत पूरा हुआ कोई ताली वाली न बज़ी कमरे मे सन्नाटा था मुझे लगा कोई क़यामत आई है देखा तो मेरे एन पीछे प्रिन्सीपल साहब खड़े थे जैसे ही सर घुमाते चटाक से एक झापड़ अपने गाल पर चिपका पाता हूं..............!
को एजूकेशन था लड़कियां भी थीं आस पास के गांव के लड़के भी थे सबके सामने हुए इस अपमान से दिल भर आया फ़फ़क़ के रो दिया ............?
पर पलट के कोई बात नहीं की दूसरे दिन एक टीचर से कहते सुना स्कूल में "प्रेम मोहब्बत के गाने इस पीढी़ का क्या होगा भगवान ?"
दूसरा मास्टर कह रहा था:- ”रेडियो ने बिगाड़ा से ससुरों को बताओ साथ में लड़कियां भी सुन रहीं थीं ?”
हमारे भविष्य की चिंता करने वाले टीचर जो तीन बजे वाली बस से जबलपुर भागते थे उनका भागना भी उसी दिन से बंद हो गया मै खुश था मेरे तमाचे का असर उधर भी था.
पंद्रह बरस बाद सरकारी जीप से गांवों के भ्रमण करता हुआ मैं जिस स्कूल में पहुंचा वहां के खिचड़ी बालों वाले शिक्षक ने सर सर कह मेरा अभिवादन किया .... और कोई नहीं उन्हीं दो टीचर्स में से एक थे मैने अफ़सरी का लबादा उतार झट उनके चरण स्पर्श किये... उनकी आंखों में जो देखा वो और कुछ नहीं आशीर्वाद की गंगा का जल ही तो था .
बातों बातों में उनने पूछा : आपके साहित्यिक काम के समाचार तो देख लेता हूं......... आज तुम्हारा गीत भी सुनना चाहता हूं थोड़ी ना नुकुर के बाद मैने ये गीत सुना ही दिया
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम
मन अनुरागी जोगी तेरा
हम-तुम में कैसी ये अनबन
*********************
कितने रुच रुच नेह निवाले
सोच सोच कर रखतीं हो !
एकाकी होती हो जब तुम
याद मेरी कर हंसती हो !
मत रोको अब प्रेम धार को
कह दो कब होगा मन संगम
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
************************
पीत-वसन -प्रीत भरा मन
पल-पल मुझसे मिलने आना
कोई और निहारे मुझको
बिना लपट के वो जल जाना
प्रेम पथिक हम दौनों ही हैं
प्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम !
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
Wikipedia
खोज नतीजे
रविवार, 1 अगस्त 2010
ललित भाई आपने मुझे मेरा पिटना याद दिला दिलाया..!!
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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बहुत सुन्दर ब्लॉग है, अपने नाम की ही तरह...इसे फ़ॉलो भी कर लेते हैं...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंkya bat hai girish bhiya, aaj to aap cha gayen, bahut acchi lagi aapki rachna , badhai
जवाब देंहटाएंमास्साब का लप्पड़ खाकर ही तो परम ज्ञान मिलता है, और वही सफ़लता की मंजिल है। जिस पर आप हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा संस्मरण
और गजब कर दिये -
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।
जवाब देंहटाएंमतलब खुराफ़ातें स्कूल से ही जारी हैं।:)
गुरु हम तो इस गीत से स्कूल में पिटे अभी आपके ब्लाग के बारे में भाभीसाब को फ़ोन लगा के बताता हूं सौ फ़ीसदी आप पिटेंगे हा हा हा
जवाब देंहटाएंpyar me anban to hogi hi ....bahut hi sunadr rachna sir ji ...
जवाब देंहटाएंललित जी तो गए ... लेने :-)
जवाब देंहटाएंअफ़सरी का लबादा उतार झट उनके चरण स्पर्श किये तो उनकी आंखों में आशीर्वाद की गंगा का जल मिला अब नए कानून के बाद कौन पीटेगा और कौन चरण छुएगा :-(
वैसे भी बिगड़ना तो हर पीढ़ी का जनमसिद्ध अधिकार है :-)
बी एस पाबला
पाबला जी सही फ़रमा रहे हैं. उज्जैन वाले प्रोफ़ेसर साहब की दशा तो सबने देखी है
जवाब देंहटाएंआज तमाम दोस्तों के नाम पे लेगें जिनके साथ पीने का वादा था !
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की पोस्ट,...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर वाकया है, आप तो पिटे लेकिन हमें पढ़कर बहुत मजा आया !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संस्मरण...यहाँ भी गा कर सुनाओ भाई..यहाँ तो झन्नाटेदार का भी डर नहीं. :)
जवाब देंहटाएंदादा जी
जवाब देंहटाएंऔर भी कुछ याद दिलाऊँ क्या?:)
क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत करा लिया है?
जवाब देंहटाएंइसके लिए आपको यहाँ चटका (click) लगा कर अपनी ID बनानी पड़ेगी, उसके उपरान्त प्रष्ट में सबसे ऊपर, बाएँ ओर लिखे विकल्प "लोगिन" पर चटका लगा कर अपनी ID और कूटशब्द (Password) भरना है. लोगिन होने के उपरान्त"मेरी प्रोफाइल" नमक कालम में अथवा प्रष्ट के एकदम नीचे दिए गए लिंक"मेरी प्रोफाइल" पर चटका (click) लगा कर अपने ब्लॉग का पता भरना है.
हमारे सदस्य"मेरी प्रोफाइल" में जाकर अपनी फोटो भी अपलोड कर सकते हैं अथवा अगर आपके पास "वेब केमरा" है तो तुरंत खींच भी सकते हैं.
http://hamarivani.blogspot.com
मन की सूती जिज्ञासा को
जवाब देंहटाएंकाँटों पर मत रखना प्रियतम..!
वाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंसच्ची बातें हमेशा दिल को छू जाती हैं।
…………..
अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।
अच्छा हुआ याद आ गया ... वर्ना तो अफसरी का लबादा बड़ा मोटा होता है ... अपन को भी बांस की संटियाँ याद आ गयीं ...
जवाब देंहटाएं