और उग आई एक प्रेम कविता देखिये
तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ !!
एक अधूरी चाह से तुम
टुकुर टुकुर निहारती मुझे
और मैं हूँ की अनदेखा करने का प्रयास करता
फिर भी तुम नि:शब्द हो
मुझे दूर तक निहारतीं हो टुकुर टुकुर
चलो ! मान भी लूं कि तुम मुझे प्यार करती हो हो तो
क्यों नहीं कह देतीं कि :'मुझे प्रीत है '
प्रिये !
तुम्हारी निगाहों से बिखरती आवाज़ को तुम
शब्दों की प्लेट में
साजों कर बस एक बार कह दो
कि मुझसे प्यार है.....
मैं प्रीत की मदालस गंध में खोया हूँ
जो पूरती है व्योम की ताम्र-वर्णी
आचार संहिता को ...
मुझे तुम्हें पाना है
इस से ज़्यादा ज़रूरी है तुम मुझे छीन लो
चलो अनुशासन और आचार संहिता को
लांघ दो
मैं आस पास खिंच गई लक्ष्मण रेखा को
पार करना चाहता हूँ
तुम्हें खुल कर जी भर प्यार करना चाहता हूँ........
Bahut din baad aapki qalam chali.. aur kasam se chhaa gayee mere dil par...
जवाब देंहटाएंShukriya
जवाब देंहटाएंचलो अनुशासन और आचार संहिता को
जवाब देंहटाएंलांघ दो
मैं आस पास खिंच गई लक्ष्मण रेखा को
पार करना चाहता हूँ
यह मासूमियत और चाहत सच में मदालस गन्ध लिये है
अत्यंत सुन्दर
जबरदस्त!! उम्दा!!
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आये और गजब का छाये.
बहुत ही शानदार...
जवाब देंहटाएंऔर खासकर अनुशासन और आचार संहिता... :)
हर दिल की चाह..
लाजबाब !!
मुझे दूर तक निहारतीं हो टुकुर टुकुर
जवाब देंहटाएंचलो ! मान भी लूं कि तुम मुझे प्यार करती हो हो तो,
कहीं भाभी जी को पता मत चल जाए के ये कौन मुई है
जो आफ़िस जागे हुए टुकुर-टुकुर देखती है,
चढ गया अटारी पे रे!लोटन कबुतर
अभी पंचमी तक हो्ली है, भांग बचाए रखें।
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता, प्यार को परिभाषित किया है।
जवाब देंहटाएंवाह प्यार की परिभाशा इतनी सुन्दर? बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन भाई , पहली बार आपको पढ़ने को मिला , लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंएक लाजवाब रचना। बहुत ही सुन्दर शब्द प्रयोग। आनन्दम।
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachana ...unmukt bhavo ki dilkash abhivayakti!!
जवाब देंहटाएंAabhar
waah...prem aur anushaasan jyada der tak nahi chalte hain..
जवाब देंहटाएंha ha ha ha ..
bahut hi sundar bahvabhiyakti ..prem ki..
प्यार ने कब कहा कि लक्ष्मण रेखा पार करो
जवाब देंहटाएंमैं मीरा बन जाऊँ प्रिय तुम श्याम रूप धरो
माना बहुत मुश्किल तुम्हारा मेरी राह पर चलना
उठ जाये अंगुलियां मुझपर,पर तुम निष्कलंक रहो