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शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
जाग विरहनी प्रियतम आए
देह राग नवताल सुहानी !
मानस चिंतन औघड़ धानी !!
भ्रम इतना मन समझ न पाए !
अन्तस-जोगी टेर लगाए
जाग विरहनी प्रियतम आए !!
मन आगत की करे प्रतीक्षा !
तन आहत क्यों करे समीक्षा !!
उलझे तन्तु सुलझ न पाए !
मन का पाखी नीर बहाए !!
जाग विरहनी प्रियतम आए !!
इक मन मोहे ज़मीं के तारे
छब तोरे नूर की एक निहारे
!
प्रियतम पथ की बावरी मैं तो
भोर
-
निशा कछु समझ न आए
!!
जाग विरहनी प्रियतम आए
!!
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