छाया :- मुकुल यादव
मन में आकर तुम ने मेरे
पीर भरा जोड़ा क्यों नाता .
अपनी अनुबंधित शामों से
क्यों कर तोड़ा तुमने नाता
…………………………………..!!
मैं न जानूं रीत प्रीत की,
तुम ने लजा लजा सिखाई..
इक अनबोली कहन कही
राह प्रीत की मुझे दिखाई
इक तो मन मेरा मस्ताना-
यूँ मंद मंद तेरा मुस्काना ..
भले दूर हो फ़िर तुमसे..
बहुत गहन है मेरा नाता..!!
मन में आकर तुम …………………………………..!!
मन आंगन में स्वप्न सलोने,
खेलें जैसे भोला बचपन ।
कैसे करूँ अभिव्यक्त स्वयं को
मन का भी तो है अनुशासन . ..
प्रिया हो तुम तो रंगरेजन .
तुमको पत्थर रंगना है आता !!
मन में आकर तुम ……………………………..!!
छायाचित्र :- Mukul Yadav
शब्द संयो.:- Girish Billore Mukul
बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
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