देह राग नवताल सुहानी !
मानस चिंतन औघड़ धानी !!
भ्रम इतना मन समझ न पाए !
अन्तस-जोगी टेर लगाए
जाग विरहनी प्रियतम आए !!
मन आगत की करे प्रतीक्षा !
तन आहत क्यों करे समीक्षा !!
उलझे तन्तु सुलझ न पाए !
मन का पाखी नीर बहाए !!
जाग विरहनी प्रियतम आए !!
इक मन मोहे ज़मीं के तारे
छब तोरे नूर की एक निहारे !
प्रियतम पथ की बावरी मैं तो
भोर-निशा कछु समझ न आए !!
जाग विरहनी प्रियतम आए !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ कीजिए शायद सटीक लिख सकूं