कल की सी बात लगती है
याद है तुम्हें प्रिये
तेरा आना जीवन में मेरे
ज्यों बहारों ने डेरा डाला हुआ हो
छुप -छुपकर कनखियों से
खिड़की के झरोखों से वो तकना मुझे
चांदनी रात में घंटों इंतज़ार करना
सिर्फ़ एक बार देखने की चाहत में
वो पल पल का हिसाब रखना तेरा
यादों के तारों को झंझोड़ जाता है
कभी प्रेम का इजहार किया नही
फिर भी प्रेम के हर रंग को जिया
अंखियों के मौन निमंत्रण को
मौन में ही संजो लिया
तन की प्यास कभी जगी ही नही
मन के प्यासे प्रेमी हम
प्रेम - वंदन में पगे रहे
ख्वाबों की चादर बुनते रहे
प्यार के मोती टांकते रहे
मेरे जिस्म , मेरे अधरों ,
मेरे गेसुओं पर कोई
कविता कभी लिखी ही नही
मगर फिर भी बिना कहे
प्रेम के हर अहसास से गुजरते रहे
इन्द्रधनुषी रंगों से प्रेम रंग में रंगते रहे
कल की सी बात लगती है
याद है तुम्हें प्रिये
फिर एक दिन तुम
मेरे प्रणय - निवेदन को भुला
मातृभूमि की पुकार पर
अपने विजय-रथ पर सवार हो
अपने हर ख्वाब को ,उस पर टंगे मोतियों को
चांदनी रात की परछाइयों को
यादों के दामन में संजो कर
देशभक्ति का कफ़न उढाकर चले गए
और मैं ..............................
तेरे विरह की अग्नि में जलती रही
पर तेरे पथ की न शिला बनी
पल - पल युगों सा निष्ठुर बन गया
कभी चांदनी रात में
तारावली की अनन्य घाटी में
तेरे दीदार को तरसती रही
कभी पतझड़ सी मुरझाती रही
तेरे आने की आस मेंदिल को मैं समझाती रही
और फिर एक दिन .............
वो मनहूस ख़बर आई
जीवन का हर रंग उडा ले गई
ये कैसे हो सकता है !
जब धड़कन चल रही हो
तो दिल कैसे रुक सकता है
जब साँस मेरी चल रही हो
तो मौसम कैसे बदल सकता है
मैं न समझ पाई कुछ
तेरे इंतज़ार में इक उम्र गुजार दी मैंने
ज़माने ने 'बावरी' नाम दे दिया
और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया
अब दर-दर भटकती फिरती थी
सिर्फ़ तुझे खोजती फिरती थी
तेरे ही नाम की माला जपती थी
कभी तेरे ख्यालों से खेलती थी
कभी तेरी याद से उलझती थी
सीने के दर्द को मैं
ज़हर बनाकर पीती थी
मगर फिर भी
साँस गर मेरी चलती है तो
मौजूद है तू कहीं न कहीं
बस इसी आस में जीती थी
सदियाँ गुजर गयीं यूँ ही सूनी
कोई भी सावन मेरा
कभी न हरा हो पाया
और पतझड़ ने जीवन में
अपना डेरा लगा लिया
और उम्र के एक पड़ाव पर आकर
जब आंखों के सतरंगी सपने सारे
चूर - चूर हो चुकेआस का दामन भी जब
लहू सा रिसने लगा
तब एक दिन अच्चानक तुमने
मेरे जीवन में ठहरे हुए
अमावस को दूर करते हुए
अपनी मोहब्बत की चांदनी बिखेरते हुए
मेरे विश्वास को अटल करते हुए
बरसों की प्रीत को
अपने प्रेम की चादर उढाकर
मेरी बरसों से सूनी मांग में
अपने अनुपम प्रेम का सिन्दूर लगाकर
मुझे अपनी प्राणप्रिया बनाकर
हमारे चिर-प्रतीक्षित प्रेम को अमर कर दिया
याद है तुम्हें प्रिये
तेरा आना जीवन में मेरे
ज्यों बहारों ने डेरा डाला हुआ हो
छुप -छुपकर कनखियों से
खिड़की के झरोखों से वो तकना मुझे
चांदनी रात में घंटों इंतज़ार करना
सिर्फ़ एक बार देखने की चाहत में
वो पल पल का हिसाब रखना तेरा
यादों के तारों को झंझोड़ जाता है
कभी प्रेम का इजहार किया नही
फिर भी प्रेम के हर रंग को जिया
अंखियों के मौन निमंत्रण को
मौन में ही संजो लिया
तन की प्यास कभी जगी ही नही
मन के प्यासे प्रेमी हम
प्रेम - वंदन में पगे रहे
ख्वाबों की चादर बुनते रहे
प्यार के मोती टांकते रहे
मेरे जिस्म , मेरे अधरों ,
मेरे गेसुओं पर कोई
कविता कभी लिखी ही नही
मगर फिर भी बिना कहे
प्रेम के हर अहसास से गुजरते रहे
इन्द्रधनुषी रंगों से प्रेम रंग में रंगते रहे
कल की सी बात लगती है
याद है तुम्हें प्रिये
फिर एक दिन तुम
मेरे प्रणय - निवेदन को भुला
मातृभूमि की पुकार पर
अपने विजय-रथ पर सवार हो
अपने हर ख्वाब को ,उस पर टंगे मोतियों को
चांदनी रात की परछाइयों को
यादों के दामन में संजो कर
देशभक्ति का कफ़न उढाकर चले गए
और मैं ..............................
तेरे विरह की अग्नि में जलती रही
पर तेरे पथ की न शिला बनी
पल - पल युगों सा निष्ठुर बन गया
कभी चांदनी रात में
तारावली की अनन्य घाटी में
तेरे दीदार को तरसती रही
कभी पतझड़ सी मुरझाती रही
तेरे आने की आस मेंदिल को मैं समझाती रही
और फिर एक दिन .............
वो मनहूस ख़बर आई
जीवन का हर रंग उडा ले गई
ये कैसे हो सकता है !
जब धड़कन चल रही हो
तो दिल कैसे रुक सकता है
जब साँस मेरी चल रही हो
तो मौसम कैसे बदल सकता है
मैं न समझ पाई कुछ
तेरे इंतज़ार में इक उम्र गुजार दी मैंने
ज़माने ने 'बावरी' नाम दे दिया
और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया
अब दर-दर भटकती फिरती थी
सिर्फ़ तुझे खोजती फिरती थी
तेरे ही नाम की माला जपती थी
कभी तेरे ख्यालों से खेलती थी
कभी तेरी याद से उलझती थी
सीने के दर्द को मैं
ज़हर बनाकर पीती थी
मगर फिर भी
साँस गर मेरी चलती है तो
मौजूद है तू कहीं न कहीं
बस इसी आस में जीती थी
सदियाँ गुजर गयीं यूँ ही सूनी
कोई भी सावन मेरा
कभी न हरा हो पाया
और पतझड़ ने जीवन में
अपना डेरा लगा लिया
और उम्र के एक पड़ाव पर आकर
जब आंखों के सतरंगी सपने सारे
चूर - चूर हो चुकेआस का दामन भी जब
लहू सा रिसने लगा
तब एक दिन अच्चानक तुमने
मेरे जीवन में ठहरे हुए
अमावस को दूर करते हुए
अपनी मोहब्बत की चांदनी बिखेरते हुए
मेरे विश्वास को अटल करते हुए
बरसों की प्रीत को
अपने प्रेम की चादर उढाकर
मेरी बरसों से सूनी मांग में
अपने अनुपम प्रेम का सिन्दूर लगाकर
मुझे अपनी प्राणप्रिया बनाकर
हमारे चिर-प्रतीक्षित प्रेम को अमर कर दिया
gahre ehsaas
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhav....nice
जवाब देंहटाएंअमर प्रेम की अमर कथा।
जवाब देंहटाएंअंत भला तो सब भला।
prem ki parakashtha..
जवाब देंहटाएंअनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति। हर जोड़ा ऐसा हो,तो ब्लॉगजगत की कविताएं भी प्रेममय बन सकें।
जवाब देंहटाएंतब एक दिन अच्चानक तुमने
जवाब देंहटाएंमेरे जीवन में ठहरे हुए
अमावस को दूर करते हुए
अपनी मोहब्बत की चांदनी बिखेरते हुए
मेरे विश्वास को अटल करते हुए
बरसों की प्रीत को
अपने प्रेम की चादर उढाकर.bahut khub.
दिल की हालत बताना नहीं आता,
जवाब देंहटाएंकिसी को ऐसे तड़पाना नहीं आता,
सुनना चाहते हैं एक बार आवाज़ आप की ,
मगर बात करने का बहाना नहीं आता।