सुर सरिता की सहज धार सुन
तुम तो अविरल हम भी अविचल !!
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अश्व बने सुर-सातों जिसके
तुम सूरज का तेज़ संजोकर !
चिन्तन पथ से जब जब निकले
गये सदा ही मुझे भिगोकर !!
आज़ का दिन तो बीत गया यूं जाने कैसा होगा फ़िर कल !!
सुर सरिता की सहज .......!
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जीवन पथ जो पीर भरा हो
नयन नीर सावन सा झर झर !
कितने परबत पार करोगे
ये सब कुछ साहस पर निर्भर ..?
दीप शिखा तुम मुझे बताना कहां हैं परबत किधर है समतल...........?
सुर सरिता की सहज .......!
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मंगलवार, 22 जून 2010
दीप शिखा तुम मुझे बताना कहां हैं परबत किधर है समतल...........?

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बहुत सुन्दर....कोई तो गाओ!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद एक शुद्ध साहित्यिक रचना पढ़ने को मिली.. आभार..
जवाब देंहटाएंसमीर भाई दीपक जी शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया साहित्यिक रचना!
जवाब देंहटाएं--
इस शास्त्रीय रचना को पढ़वाने के लिए आभार!
निशब्द हूँ............बिलकुल वही.........
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