सुभगे उर्मिला
तुमने मेरे दिए हुए
अश्रु सजा लिए अपनीं पलकों पर
निस्तब्ध/नि:शब्द
ताकती आकाश को
कदाचित मेरे दिए गए अश्रु-उपहार/मेरी अमानत के
बिखर जाने के भय से
तुम जो निस्तब्ध/नि:शब्द/स्थिर हो
सच उर्मिले
मन प्राण से तुम्हारा लक्ष्मण आज प्रतिज्ञा और संकल्प का
निबाहने तुम से दूर है
यहीं से
तुम्हारी तापस देह को
देख रहा हूँ.......
सुभगे
राम के साथ मैं सा-शरीर हूँ किन्तु
तुम चौदह बरस तक यूं ही
पथराई-प्रतीक्षिता
किसी युग में ऐसी सहचरी किसी को भी न मिलेगी यह तय है
प्रिये
तुम्हारी पावन प्रीत के आगे मैं नत मस्तक हूँ
तुम्हारा अपराधी हूँ
तुम जो साक्षात "प्रेम-देवी हो"
तुम्हें नमन सदैव
Wikipedia
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बुधवार, 16 दिसंबर 2009
तापसी-उर्मिला
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में।
शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी
छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन
सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंhttp://voi-2.blogspot.com KI YE PAHLI POSTING BEHAD HI JABARDAST HAI... SUR, LAY AUR TAAL KE SATH AWAZ, ANDAAZ AUR ALFAAZ BHI SHANDAR!..
जवाब देंहटाएंWARM REGARDS
RAM K GAUTAM