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सोमवार, 13 जुलाई 2009

प्रेम दीप जो तुमने बारे

प्रेम दीप जो तुमने बारे
नेह किरण ने किये सकारे !
"हम-तुम" का "संग-दीपक" बाती
भर-भर थालों बंटे उजारे...!
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किसकी रात हुयी अंधियारी
किसके दिन बीते दुखियारे !
किसने कितनी पीड़ा भोगी
कौन हुए सुख के हरकारे !
पहुना दीप घर-घर रख दीन्हे -
ज़मीं पे उतरे नभ के तारे ?
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हर त्यौहार गाँव का मेरे
भावों की सुन्दर मंजूषा .
सतरंगी पर्वों का भारत
ऐसा देश कहीं है दूजा...?
अपनी सोच साथ रख अपने
मत आके बो तू अंगारे !!

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